नलिनी सिंह — अरे आदर्श जैसा दुसरा कुत्ता कहाँ से लाऊँ ? मैं खुद कुत्ती हुँ इसलिए अच्छी नश्लकी पहचान मुझमे ज्यादा है ।
आदर्श पाण्डे—अब उतना सैलरी कहाँ मिलेगा गाउँ जाकर पानकी दुकान करुंगा ।
सुमन्त सिंह—कभी बेटा कहती थी नलिनी, अब साली जानकी पिछे पडी है ।
सुभाष तनवर — नशा शराब में होती तो नाँचती बोतल,
एमएम जैन— बाहर से जितने शरिफ लगते हो भितरसे उतने हो नहि ।
अजय ठाकुर— हमें तो लुटना था, सो लुट लिया ।
आलोक दास — तुम डाल डाल मैं पात पात ।
शरताज अनवर— मुझको भी तो लिफ्ट करा दो ।
कन्त शरण— द मेकिंग अफ आदर्श पाण्डे ।
सुन्दर— वाह मेरी तरक्की । दिल्लीका पिउन अब नेपालमे सर और नलिनीका सीआईडी ।
महेन्द्रथापा — अरे यार इतना पकाती है मत पुछो, जीवनमें बहुत कुछ छुट चुका है इसलिए नौकरी तो सम्भालकर रखनी है ।
रुपिन गुरुंग— कस्तो हुनुहुन्छ ? सस्तो मुल्यमा नेपाली कामदार चाहिए भन्नुस, म ल्याउँछ ।
यादप अधिकारी— लिभिंग टुगेदर नो प्रोब्लम ।
रुपा खडका— दिल्लीकी याद बहुत सताती है, काठमाण्डूकी सर्दी । हाय में क्या करुँ ?
सुनैना कार्की— रंगविरंगा विरंगा पानी पिके सिधी साधी कुडी बिगर गई ।
जितेन्द्र झा— धोबी का गदहा, ना घरका ना घाटका, टिभी लाइव और अलइन्डिया दोनोसे हाथ धोया ।
साबी घिमिरे— मेरे नैना सावन भादो फिर भी मेरा तनमन प्यासा ।
मनिषा घले — कभी कोट पहन कर न्युजमें कभी स्कट पहन कर इन्टरटेनमे, वाह मेरी बुलबुल ।
शोभा भण्डारी — मैं हरिकला से अच्छी एंकरिग कर सकती हु, फुच्ची हुँ तो क्या हुआ ।
हरिकला पाण्डे — एंगकरिंग गरने मेरो कला कस्तो लाग्यो ?
सरोज झा — मुझको नेपाली आउँछ, म पनि नेपाली हुँ ।
विपी कोइराला— बाटो बिराएर एंकर बनियो, अब बल्ल आँखा खुल्यो
विवेक राउत— आदर्श के पेलाइ ना होनेसे कुछ राहत महसुस कर रहा हुँ ।
अराफात— एक तुँही धनवान है गोरी बाँकी सब कंगाल ।
विणा— मेकअप रुममे सोती हुँ तो क्या हुआ, डयुटी में तो हुँ ।
दिपक— गाली बकना कोइ मुझ से सिखे ।
विकास— कौन साला बोलता है मुझे कामचोर ?
रमन काफले— अमन चैन की जिन्दगीकी तलाश ।
वसन्त रिजाल— नेपाल गया, नोकरी तो मिली नहि पर छोकरी मिल गई ।
गणेश पाण्डे— शादी शुदा, बालबच्चेबाला हुँ पर ये बातें किसी कुवाँरी लडकीको मत बताना ।
दिपक बोहरा— आता वाता तो कुछ है नहि, चले पत्रकार बनने ।
शक्ति शाह— स्ट्राइक में भी काम किया फिर भी बुढिया ने लात मारके आउट किया ।
पुजा शाह— इन्डियनको धोती बोलती हो और खुद ...... ।
अनिल कर्ण—लोग कहते हैं मैं शराबी हुँ,पर मैं और भी बहुत कुछ हुँ कबाबी, चाप्लुस ?
धर्मेन्द्र कर्ण— (पप्पु कान्ट डान्स) मुझे पप्पु कहने वालोंको दिखा दुंगा साला असली पप्पु कौन है ।
सलमा खातुन— मैं तुलसी तेरे आँगन की ।
कविता— मै कैसी दिखती हुँ ?
सलोजा— बहुत मुश्किल, अरे दमघुट रही है ।
पवन — अनिलका चेलवा मत कहो मुझे ।
इन्द्र — मेरी भी पारी आएगी ।
अशोक— स्यालरी बढवानी मानो मख्खीमेंसे घी निकालना ।
इन्द्रजीत— सालेको तो क्यामरामैन बना दिया सालीको एन्कर कब बनाओगे ?
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